Tuesday, September 14, 2010

मेहेर की महिमा

कनक सदृश प्रकाश है मुख पर,
मधु-मिश्रित मुस्कान अधर पर,
दैवीय शान्ति के प्रतिरूप मेहेर हैं,
ध्रुव तारा है नील गगन पर|
इक-इक को दिखलाते पथ हैं,
करते चलायमान वो जीवन रथ हैं,
सारथी बन अर्जुन के रथ के,
करते कष्टों को पृथक हैं|
रामायण के राम वही हैं,
गीता के घनश्याम वही हैं,
बाइबिल के हैं ईसा वही,
पगंबर, यजदान वही हैं|
प्रेम में पड़ "आलोक" ये कहता,
दास बना लो मुझको भरता,
चरण-धूलि देकर हे प्रभुवर,
बहा दो अपने प्रेम की सरिता|

इल्तिजा

क़ाबिलियत कहाँ मुझमे, कि तुझे समझ पाऊँ मैं,
मेरी तो बस इतनी इल्तिजा है कि तेरा नाम ध्याऊँ मैं|
करम इतना ही कर दे मुझपर, ऐ बन्दानावाज़,
कि तेरे दामन की कोर से जुदा ना हो ये परवाज़|
इनायत है तेरी कि नवाज़ा तूने इस रूप से,
नज़र-ए-इनायत की दरक़ार है, हुज़ूर-ए-अक़रम मेहेर से|
मेहेर से तेरे महरूम ना रहूँ ऐ मेहेर,
एक ज़र्रा ही बना कर रख ले अपने क़दमो में ऐ मेहेर|
ता-उम्र तेरी शान में क़लमा पढूं मैं,
इतनो सहूलियत दे कि, ज़िन्दगी ही तेरे नाम कर दूं मैं|

Tuesday, June 15, 2010

मेहेर नाम की शान


दरबार-ए-मेहेर की शान का,
कैसे करुँ बखान,
जहाँ शब्दों की भी सीमा है,
ऐसा है इक आसमान|

जहाँ प्रकृति भी करती है सजदा,
पर्वत भी होते हैं नतमस्तक,
उस हुज़ूर--अकरम मेहेर की,
नदियाँ भी करती हैं इबादत|

चलो चलें देखने एक झलक,
अपने उस प्रियतम की,
करुणामय करुणा की मूर्ति की,
उस परमपिता की|

सहज भाव से जाना, उस
कृपानिधान के पास,
सराबोर होगे, करुणारस से,
न रहेगी कोई आस|

शीरीं के लाल का वो,
दिव्य स्थल, महसूस होती है,
उस दयानिधि की,
उपस्थिति प्रतिपल|

जब चाहेगा, बुला लेगा,
तुम्हे अपने पास,
लबों पर हो नाम हमेशा,
हो इसी नाम की प्यास|