Tuesday, June 15, 2010

मेहेर नाम की शान


दरबार-ए-मेहेर की शान का,
कैसे करुँ बखान,
जहाँ शब्दों की भी सीमा है,
ऐसा है इक आसमान|

जहाँ प्रकृति भी करती है सजदा,
पर्वत भी होते हैं नतमस्तक,
उस हुज़ूर--अकरम मेहेर की,
नदियाँ भी करती हैं इबादत|

चलो चलें देखने एक झलक,
अपने उस प्रियतम की,
करुणामय करुणा की मूर्ति की,
उस परमपिता की|

सहज भाव से जाना, उस
कृपानिधान के पास,
सराबोर होगे, करुणारस से,
न रहेगी कोई आस|

शीरीं के लाल का वो,
दिव्य स्थल, महसूस होती है,
उस दयानिधि की,
उपस्थिति प्रतिपल|

जब चाहेगा, बुला लेगा,
तुम्हे अपने पास,
लबों पर हो नाम हमेशा,
हो इसी नाम की प्यास|