Tuesday, September 14, 2010

मेहेर की महिमा

कनक सदृश प्रकाश है मुख पर,
मधु-मिश्रित मुस्कान अधर पर,
दैवीय शान्ति के प्रतिरूप मेहेर हैं,
ध्रुव तारा है नील गगन पर|
इक-इक को दिखलाते पथ हैं,
करते चलायमान वो जीवन रथ हैं,
सारथी बन अर्जुन के रथ के,
करते कष्टों को पृथक हैं|
रामायण के राम वही हैं,
गीता के घनश्याम वही हैं,
बाइबिल के हैं ईसा वही,
पगंबर, यजदान वही हैं|
प्रेम में पड़ "आलोक" ये कहता,
दास बना लो मुझको भरता,
चरण-धूलि देकर हे प्रभुवर,
बहा दो अपने प्रेम की सरिता|

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