Thursday, August 20, 2009

अज्ञात

मुझे गर्व था कि मैं तुझे जानता हूं,
मेरी सभी रचनाओं में दुनिया वाले तेरी छवि देखते हैं

यहां आ कर वे पूछते हैं "ये कौन है?"
मैं आवाक् रह जाता हूं, "कौन जाने!" यही कह देता हूं

वे मुझे भला बुरा कह कर अवज्ञा से मुंह फेर कर चले जाते हैं,

तेरी छवि मुस्कुराती है

तेरी कहानी को अमर गीतों में बांधता हूँ,

मेरे ह्रृदय के निर्झर से वे गीत स्वतः बहते हैं


वे आकर पूछते हैं, "इन गीतों का अर्थ क्या है?"

उन्हे क्या कहूं, यही कह देता हूं, "कौन जाने क्या अर्थ है इनका"

वे मुझे भला बुरा कह कर अवज्ञा से मुंह फेर कर चले जाते हैं,

तू मुस्कुराता हुआ बैठा रहता है

8 comments:

प्रवीण शुक्ल (प्रार्थी) said...

बहुत बेहतरीन कविता है मेरी बधाई स्वीकार करे और आप हिंदी में लिखते है ,
बहुत ख़ुशी की बात है,
हिंदी परिवार में आप का स्वागत है ,
उम्मीद है आप अपने लखे के द्बारा हमें अनुग्रहित करते रहेगे
सादर
प्रवीण पथिक
9971969084

Unknown said...

Bahut Barhia... isi tarah likhte rahiye...

http://hellomithilaa.blogspot.com
Mithilak Gap... Maithili Me

http://muskuraahat.blogspot.com
Aapke Bheje Photo

http://mastgaane.blogspot.com
Manpasand Gaane

शशांक शुक्ला said...

अच्छी कविता लिखी है

Pearl Arts said...

good poem

Chandan Kumar Jha said...

सुन्दर रचना.

चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.

गुलमोहर का फूल

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

narayan narayan

sandhyagupta said...

Sundar abhivyakti.Badhai.

Meher Alok said...

Aap sab logon ne jo meri hausla afzaai ki hai uske liye bahut bahut dhanyawad.

aabhaar
Meher Alok